वर्धमान महावीर

जैन धर्म ने गैर-धार्मिक विचारधारा के माध्यम से रूढ़िवादी धार्मिक प्रथाओं पर जबरदस्त प्रहार किया| जैन धर्म लोगों की सुविधा हेतु मोक्ष के एक सरल, लघु और सुगम रास्ते की वकालत करता है| यहाँ हम जैन धर्म, महावीर की शिक्षाएं और जैन धर्म के प्रसार के कारणों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं जो UPSC, SSC, State Services, NDA, CDS और Railways जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए बहुत ही उपयोगी है|

 (539-467 ई.पू.)

1. महावीर का जन्म वैशाली के नजदीक कुंडग्राम में क्षत्रिय कुल में हुआ था| उनके माता-पिता का नाम सिद्धार्थ और त्रिशला था|
2. उनकी पत्नी का नाम यशोदा था|
3. तेरह वर्षों की कठोर तपस्या और साधना के बाद उन्हें सर्वोच्च आध्यात्मिक ज्ञान, जिसे “कैवल्य ज्ञान” कहा जाता है, की प्राप्ति हुई| इसके बाद उन्हें महावीर या जिन कहा जाने लगा|
4. उन्होंने तीस साल तक जैन धर्म के सिद्धांत का प्रचार किया और जब वह 72 वर्ष के थे तो राजगृह के पास पावापुरी में उनका निधन हो गया|

जैन धर्म के उदय के कारण

1. 6ठी शताब्दी ई.पू. में धार्मिक अशांति|
2. उत्तरवैदिक काल की जटिल रस्में और बलिदान जो काफी मंहगे थे और आम जनता द्वारा स्वीकार्य नहीं थे|
3. पुजारियों के उदय के कारण अंधविश्वास और विस्तृत अनुष्ठानों की परम्परा का जन्म|
4. कठोर जाति व्यवस्था|
5. व्यापार के विकास के कारण वैश्यों की आर्थिक हालत में सुधार हुआ| जिसके परिणामस्वरूप वे वर्ण व्यवस्था में अपनी सामाजिक स्थिति में सुधार करना चाहते थे| इसलिए उन्होंने नए उभरते हुए धर्म का समर्थन किया|

महावीर की शिक्षाएं

1. महावीर ने वेदों के एकाधिकार को अस्वीकार किया और वैदिक अनुष्ठानों पर आपत्ति जताई|
2. उन्होंने जीवन के नैतिक मूल्यों की वकालत की| उन्होंने कृषि कार्य को भी पाप माना था क्योंकि इससे पृथ्वी, कीड़े और जानवरों को चोट पहुँचती है|
3. महावीर के अनुसार, तप और त्याग का सिद्धांत उपवास, नग्नता और आत्म यातना के अन्य-उपायों के अभ्यास के साथ जुड़ा हुआ है|

जैन धर्म का प्रसार

1. संघ के माध्यम से, महावीर ने अपनी शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार किया, जिसमें महिलाएं और पुरुष दोनों शामिल थे|
2. चंद्रगुप्त मौर्य, कलिंग के शासक खारवेल और दक्षिण भारत के शाही राजवंश जैसे गंग, कदम्ब, चालुक्य और राष्ट्रकूट के संरक्षण में जैन धर्म का प्रसार हुआ|
3. जैन धर्म की दो शाखाएँ हैं- श्वेताम्बर (सफेद वस्त्र धारण करने वाला) और दिगम्बर (आकाश को धारण करने वाला या नंगा रहने वाला)|
4. प्रथम जैन संगीति का आयोजन तीसरी शताब्दी ई.पू. में पाटलीपुत्र में हुआ था, जिसकी अध्यक्षता दिगम्बर मत के नेता स्थूलबाहू ने की थी|
5. द्वित्तीय जैन संगीति का आयोजन 5वीं शताब्दी ईस्वी में वल्लभी में किया गया था| इस परिषद में 'बारह अंगों' का संकलन किया गया था|

Comments

Popular posts from this blog

सिकंदर महान

Indian Great writers

Computer Tips In Hindi